डॉ रचना सिंह "रश्मि"

जिस्म ही नही रूह को भी हलाल करता निकाह-ए-हलाला 


            लाक,तलाक,तलाक ये तीन शब्द मुस्लिम महिला के लिए दोजख (नर्क) से कम नहीं होते है.ये शब्द अच्छी खासी ज़िंदगी में भूचाल ले आते हैं जिस घर-संसार को वो सालों से सहेजती आती वो एक पल ही पराया हो जाता है उसकी वो हर चीज जो उसके मोहब्बत भरे पलों से जुड़ी हो  वो छिन जाती है सबसे अहम उसके बच्चे जिनके लिए मुस्तकबिल(भविष्य) के लिए कितने ख्वाब (सपने )देखे होते है कैसे इन को पूरा होते हुए देख पायेयी 

किस !मुंह से मयाके जायेगी लोग उसके वालिदन का जीना हराम कर देंगे सोच सोच वो हलकान हो जाती हैं 

मुस्लिम महिलाओं के जीवन की एक कड़वी सच्चाई है, जो अब तक अपनी दुर्दशा के खिलाफ बोलने में खुद को असहाय महसूस करती हैं। 

बहुत सारे शौहर औरत को नीचा दिखाने मायके वालों को बेइज्जत करने के लिए और अपनी आप्रकृतिक यौन इच्छाओं और लालच में औरत को पैर की जूती समझने वाले किसी भी हद तक गिर जाते हैं अपनी पत्नी को कभी अम्मी (मां )कभी भाभी कभी बहु बना देते हैं एक औरत से  परिवार के मर्द अपनी कामेच्छा पूरी करता है निकाहे -ए-हलाला के रुप में

सालों से इस्लाम में निकाहे-ए-हलाला’ के नाम से मुस्लिम औरतों का यौन और मानसिक उत्पीड़न हो रहा है पारिवारिक सदस्यों  सुसर, देवर ननदोई के आदि से के साथ अपने जमीर और रूह का ताक पर रखकर हमबिस्तर होना पड़ता है क्या बीतती है दिल पर अपनी इच्छा के बिना एक ऐसे सम्बन्ध से यौनाचार करना जो पिता तुल्य सुसुर होता है  सिर्फ इसलिए कि उनकी ज़िंदगी में खोई खुशियां लौट आएं। अपने बच्चों के साथ खुशी से जीवन गुजार सके

शरिया कानून के मुताबिक अगर पति की ओर से पत्नी के लिए ‘तलाक’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, होशोहवास में या तैश के वश में आकर, तो वो ‘इद्दत’ की तीन महीने की मुद्दत में तलाक को रद्द कर सकता है.

इस्लाम में निकाहे-ए-हलाला क्या !है 

इस्लाम में औरत को तीन तलाक देने के बाद

शौहर किसी से भी निकाह कर सकता है पर  दोबारा उसी महिला से निकाह  करने की प्रक्रिया को निकाह-ए-हलाला कहा जाता है। 

हलाला' का जन्म 'हलाल' से हुआ है. अरबी में हलाल का मतलब होता है न्यायसंगत, वैध है

शरिया के मुताबिक अगर किसी पुरुष ने औरत को तीन तलाक दे दिया है तो उसने उस औरत का अपमान किया है। अब वो शख्स उस औरत से दोबारा तब तक शादी नहीं कर सकता, जब तक वो औरत किसी दूसरे पुरुष से निकाह कर तलाक न ले ले। जब तक हलाला नहीं होता जब तक दोबारा निकाह नहीं हो सकता है या यूं कहे बिना हलाला के अगर निकाह होता है तो अवैध होता है वैसे, महिला के दूसरे पति को तलाक देने पर मजबूर नहीं किया जा सकता। वो चाहें तो पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं। मगर निकाह हलाला के लिए तलाकशुदा महिला को किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी होती है। उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना होता है। फिर दूसरे पति से तलाक लेनी होती है। तब जाकर पहले पति के साथ फिर से निकाह होता है। 

तलाक-इद्दत का प्रावधान पति के लिए चेतावनी की तरह होता है कि वो पत्नी को स्थायी तौर पर तलाक ना दे. अगर पति की ओर से पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए तीन बार तलाक लगातार कहा जाता है तो वो तलाक पूरा माना जाता है. फिर ऐसा जोड़ा ना तो इद्दत की मुद्दत से दोबारा शादी कर सकता है और ना ही अपनी दोनों की रज़ामंदी से.

निकाहे-ए-हलाला मर्दों को सजा देने के लिए पैंगम्बर  द्वारा बनाई गई पुरुषों के लिए सजा थी,  लेकिन पुरुषों से अधिक नुकसान इससे महिलाओं को हुआ है. दो तलाक के बाद साथ रह सकता है पर तीसरे तलाक के बाद वो बीबी जो कल तक उसकी जाने जाने जिगर थी अब उस पर हराम है मर्द को चोट पहुंचे जो सिर्फ और सिर्फ उसकी बीबी थी उसको वापस पाने के लिए किसी और के साथ तन-मन बांटना पड़ा है दोबारा कभी वो इसी ग़लती ना करे और दूसरों को भी सबक मिले  पर समय और सहूलियत के हिसाब से पुरूषों ने  मौलवियों के साथ मिलकर इस घिनौनी कुप्रथा के नाम से महिलाओं को सिर्फ जिस्म पूर्ति का साधन बना लिया है  धर्म के ठेकेदारों ने मजहबी आड़ में नियम-कानून के नाम  धंधा बना लिया। वे एक रात का शौहर बन औरतों को तलाक देते हैं, इसके एवज में मोटी रकम लेकर दूसरे दिन तलाक दे देते है ताकि वे पहले शौहर से दोबारा निकाह कर सकें।साथ ही बहुत से मर्द ऐसे भी अपनी पत्नी को अपने रिश्तेदारों से हलाला के नाम पर शोषण करवाने ने से भी नहीं चूकते है जबकि  इस्लाम में जानबूझ कर तलाक और उसके बाद जानबूझकर या साज़िश सरासर नाजायज है और अल्लाह के रसूल  (सल्लल्हाहु आलैहि वसल्लम)ने लानत फरफाई है हलाला सिर्फ और सिर्फ औरत को नीचा दिखाना और यौन-शोषण  का माध्यम है 

तीन तलाक़ इददत गुजारने के बाद औरत अपनी मर्ज़ी से किसी से भी निकाह करे  और खुशी खुशी आपने शौहर के शाथ जीवन गुजारे  किन्ही कारणवश दोबारा तलाक हो जाएं या वह विधवा हो जाएं अगर उसका पहला शौहर अपनी बीबी से  दोबारा निकाह करे तो जायज़ हलाला  कहलाता है पर यह शरीयत के मुताबिक है पर आजकल तो  कई वेबसाइटें और सोशल मीडिया पेज उन महिलाओं को हलाला विवाह सेवाएं प्रदान कर रहे हैं, जिन्हें उनके पहले पति ने तलाक दे दिया है इसके एवज में वो मोटी फीस वसूलते हैं 

हलाला की जड़ें अभी भी भारत में मजबूती से जुड़ी है। इसके लिए पढ़ें लिखें मुस्लिम युवकों और युवतियों को आगे आना होगा कठमुल्लाओं के फतवे नहीं बल्कि भारतीय संविधान को मानना होगा जिस तरह कत्ल और बलात्कार पर आई पी सी की तहत कानूनी प्रक्रिया  अपनाई जाती है इसी तरह हलाला को कानूनी दायरा में लाना होगा मुस्लिम समाज के पढ़े लिखे लोग ख़ासतौर पर महिलाओं एकजुट होकर तीन तलाक़ के साथ निकाहे-ए-हलाला  को खत्म करना होगा

पितृसत्तात्मक समाजों में, धार्मिक कानून अक्सर असंतुलित होते हैं, पुरुषों के पक्ष में होते हैं। तीन तलाक और निकाह हलाला जैसे कानून न केवल पुरातन हैं, बल्कि ये मुस्लिम महिलाओं को कमजोर भी कर रहे हैं। इसलिए शरिया क़ानून को खारिज करना होगा

साथ ही साथ हमारे कथित सभ्य समाज को भी अपने मजहब, पंथ और राजनैतिक संकीर्णता से ऊपर उठकर महिलाओं और मानव अधिकारों के लिए आगे आना पड़ेगा। आप कैसे किसी महिला को किसी भाड़े के गैर मर्द के साथ सिर्फ इसलिए सोने के लिए कह सकते हैं, क्योंकि उसे अपने तलाक़शुदा पति के पास वापस जाना है? ये न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि ऐसे कुरीतियों का भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में कोई स्थान नहीं है।

विश्व ही नहीं पृथ्वी का भी प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ 


पुराणों के अनुसार शिव की महत्ता अनादी काल से इस संसार के लिए अबूझ है। जिस प्रकार इस सारे ब्रह्माण्ड का न कोई अंत है और न ही कोई आरंभ है।त्रिकाल दृष्टा प्रभु शिव का न ही कोई आरम्भ है और न ही अंत है शिवपुराण के अनुसार देवो के देव महादेव जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता  है सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को  विश्व ही नहीं पृथ्वी का प्रथम शिवलिंग होने का गौरव प्राप्त है 

भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित गुजरात के सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में विश्वप्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर में यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है।

आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराणम,श्रीमद्‍भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार देवो के देव महादेव अजन्मे है, अनंत है। शास्त्रों एवं  पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महादेव जहाँ-जहाँ स्वयं प्रगट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है शिवपुराण के अनुसार दक्षप्रजापति के श्राप से बचने के लिए, सोमदेव (चंद्रदेव) ने भगवान शिव की आराधना की। अंततः शिव प्रसन्न हुए और सोम(चंद्र) के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव की यहाँ पर स्थापना स्वयं सोमदेव ने की थी ! इसी कारण इस तीर्थ का नाम ”सोमनाथ”पड़ा।सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों का विशेष महत्व है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं। वे भगवान्‌ शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक सारे कृत्य स्वयंमेव सफल हो जाते हैं।मनुष्य सभी पापों से मुक्त होता है और अभीष्ट फल प्राप्त करता है। सोमनाथ की परिक्रमा करने से पृथ्वी की परिक्रमा करने के तुल्य पुण्य मिलता है। यह स्थान पशुपत मत के शैवों का केंद्र स्थल भी है

सोमनाथ मंदिर वास्तुकला चालुक्य शैली (जिसे कैलाश महामेरु प्रसाद के नाम से भी जाना जाता है) को दर्शाता है।

बाण स्तम्भ या तीर वाला स्तंभ मुख्य मंदिर परिसर का एक हिस्सा है। तीर दक्षिणी ध्रुव की ओर इशारा करता है, जिससे यह पता चलता है कि मंदिर और अंटार्कटिका के बीच कोई भूभाग नहीं है। पानी के माध्यम से दक्षिणी ध्रुव की ओर जाने वाले मार्ग को अबादित समुद्र मार्ग कहा जाता है, जिसका अर्थ है एक ऐसा मार्ग जहाँ कोई रुकावट नहीं है।

यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। 

मुख्य मंदिर संरचना में  (गर्भगृह) है जिसमें ज्योतिर्लिंग, सभा मंडपम और नृत्य मंडपम हैं। मुख्य शिखर या मीनार 150 फीट की ऊंचाई पर है। शिखर के ऊपर कलश है जिसका वजन लगभग 10 टन है। और ध्वजदंड (झंडा खंभा) 27 फीट ऊंचा और 1 फुट परिधि में है।

 सोमनाथ मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद, शिव पुराण, स्कंद पुराण और श्रीमद भागवत में मिलता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मूल मंदिर कितना पुराना था।

यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में सोमनाथ मंदिर विदेशी आक्रांताओं द्वारा सत्रह बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया। 

ऐतिहासिक लूट और पुनर्निर्माण की कहानी लिए गुजरात का सोमनाथ मंदिर हमेशा से विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है।

यह जगह केवल मंदिर के लिए नहीं बल्कि अन्य पर्यटन केंद्रों के लिए भी विश्वविख्यात है।

यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहाँ श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहाँ तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्त्व है।

विशेष है आरती


सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में आरती शब्दों में नहीं गाई जाती, यह आरती शंख, नगाड़े, शहनाई एवं घंटियों की ध्वनि के साथ होती है, इसमें शब्द नहीं होते सिर्फ संगीत होता है। कर्णप्रिय आरती की ध्वनि, दीयों की रौशनी, वातावरण में फैली गुगल की खुशबू, भक्ति से सराबोर जनमानस और भगवान भोलेनाथ का दिव्य ज्योतिर्लिंग स्वर्गलोक का वातावरण उत्पन्न कर देता है।

आरती के समय : सुबह 6 बजे, दोपहर को 12 बजे और शाम को 7 बजे।


सोमनाथ ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचें? 

वायु मार्ग- सोमनाथ से 55 किलोमीटर स्थित केशोड नामक स्थान से सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा है। केशोड और सोमनाथ के बीच बस व टैक्सी सेवा भी है। 

रेल मार्ग- सोमनाथ के सबसे समीप वेरावल रेलवे स्टेशन है, जो वहां से मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहाँ से अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों का सीधा संपर्क है। 

सड़क परिवहन- सोमनाथ वेरावल से 7 किलोमीटर, मुंबई 889 किलोमीटर, अहमदाबाद 400 किलोमीटर, भावनगर 266 किलोमीटर, जूनागढ़ 85 और पोरबंदर से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। पूरे राज्य में इस स्थान के लिए बस सेवा उपलब्ध है।                          

यहां स्थान पर तीर्थयात्रियों के लिए होटल ,गेस्ट हाउस, विश्रामशाला व धर्मशाला की व्यवस्था है। साधारण व किफायती सेवाएं उपलब्ध हैं। वेरावल में भी रुकने की व्यवस्था है।