इकाई - I
वर्ण विचार
हिंदी वर्णमाला
1. वर्ण विचार व्याकरण के उस भाग को कहते हैं, जिसमें वर्णों के आकार, भेद, उच्चारण तथा उनके मेल से शब्द बनाने के नियमों का निरूपण होता है।
2. वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड न हो सकें; जैसे—अ, इ, क्, ख् इत्यादि।
‘सबेरा हुआ’ इस वाक्य में दो शब्द हैं, ‘सबेरा’ और ‘हुआ’। ‘सबेरा’ शब्द में साधारण रूप से तीन ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं—स, बे, रा। इन तीन ध्वनियों में से प्रत्येक ध्वनि के खंड हो सकते हैं, इसलिए वह मूल ध्वनि नहीं है। ‘स’ में दो ध्वनियाँ हैं, स्, अ, और इनके कोई और खंड नहीं हो सकते इसलिए ‘स्’ और ‘अ’ मूल ध्वनि हैं। ये ही मूल ध्वनियाँ वर्ण कहलाती है। ‘सबेरा’ शब्द में स्, अ, ए, र्, आ—ये छह मूल ध्वनियाँ हैं।
इसी प्रकार ‘हुआ’ शब्द में ह्, उ, आ—ये तीन मूल ध्वनियाँ या वर्ण हैं।
3. वर्णों के समुदाय को वर्णमाला1 कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में 43 वर्ण हैं। इनके दो भेद हैं, (1) स्वर, (2) व्यंजन।2
4. स्वर उन वर्णों को कहते हैं जिनका उच्चारण स्वतंत्रता से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं; जैसे—अ, इ, उ, ए इत्यादि।
हिंदी में स्वर 11 हैं—
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
5. व्यंजन वे वर्ण हैं जो स्वर की सहायता के बिना नहीं बोले जा सकते। व्यंजन 33 हैं—
क, ख, ग, घ, ङ। च, छ, ज, झ, ञ।
ट, ठ, ड, ढ, ण। त, थ, द, ध, न।
प, फ, ब, भ, म। य, र, ल, व, श
ष, स, ह।
इस व्यंजनों में उच्चारण की सुगमता के लिए ‘अ’ मिला दिया गया है। जब व्यंजनों में कोई स्वर नहीं मिला रहता तब उसका स्पष्ट उच्चारण दिखाने के लिए उनके नीचे एक तिरछी रेखा कर देते हैं जिसे हिंदी में हल् कहते हैं; जैसे—क्, थ्, म् इत्यादि।
6. व्यंजनों में दो वर्ण और हैं जो अनुस्वार और विसर्ग कहलाते हैं। अनुस्वार का चिह्न स्वर के ऊपर एक बिंदी और विसर्ग का चिह्न स्वर के आगे दो बिंदियाँ हैं; जैसे—अं, अ:। व्यंजनों के समान इनके उच्चारण में भी स्वर की आवश्यकता होती है; पर इनमें और दूसरे व्यंजनों में यह अंतर है कि स्वर इनके पहले आता है और दूसरे व्यंजनों के पीछे; अ + ां, अं, अ + :, अ:, क् + अ = क, ख् + अ = ख।
7. हिंदी वर्णमाला के वर्णों के प्रयोग के संबंध में कुछ नियम ध्यान देने योग्य हैं—
(अ) कुछ वर्ण केवल संस्कृत (तत्सम) शब्दों में आते हैं; जैसे—ऋ, ण्, ष्। उदाहरण-ऋतु, ऋषि, पुरुष, गण, रामायण।
(आ) ङ् और ञ पृथक् रूप से केवल संस्कृत शब्दों में आते हैं; जैसे पराङमुख, नञ् तत्पुरुष।
(इ) संयुक्त व्यंजनों में से क्ष और ज्ञ केवल संस्कृत शब्दों में आते हैं; जैसे—मोक्ष, संज्ञा।
(ई) ङ्, ञ्, ण हिंदी में शब्दों के आदि में नहीं आते। अनुस्वार और विसर्ग भी शब्दों के आदि में प्रयुक्त नहीं होते।
(उ) विसर्ग केवल थोड़े से हिंदी शब्दों में आता है; जैसे—छ:, छि: इत्यादि।
लिपि
8. लिखित भाषा में मूल ध्वनियों के लिए जो चिह्न मान लिए गए हैं, वे भी वर्ण कहलाते हैं; पर जिस रूप में ये लिखे जाते हैं, उसे लिपि कहते हैं। हिंदी भाषा देवनागरी लिपि1 में लिखी जाती है। (सू.—देवनागरी के सिवा कैथी, महाजनी आदि लिपियों में भी हिंदी भाषा लिखी जाती है; पर उनका प्रचार सर्वत्र नहीं है। ग्रंथलेखन और छापने के काम में बहुधा देवनागरी लिपि का ही उपयोग होता है।)
9. व्यंजनों के अनेक उच्चारण दिखाने के लिए उनके साथ स्वर जोड़े जाते हैं। स्वरों की मात्राएँ नीचे लिखी जाती हैं— अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, एै, ओ, औ ा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ
10. अ की कोई मात्रा नहीं है। जब यह व्यंजन में मिलता है, तब व्यंजन में नीचे का चिह्न ( ् ) नहीं लिखा जाता; जैसे—क्+अ = क, ख् + अ = ख।
11. आ, ई, ओ और औ की मात्राएँ व्यंजन के आगे लगाई जाती हैं, जैसे—का, की, को, कौ। इ की मात्रा व्यंजन के पहले, ए और ऐ की मात्राएँ ऊपर; और उ, ऊ की मात्राएँ नीचे लगाई जाती हैं; जैसे कि, के, कै, कु, कू, कृ।
12. अनुस्वार स्वर के ऊपर, और विसर्ग स्वर के पीछे आता है; जैसे—कं, किं, क:, का:।
13. उ और ऊ की मात्राएँ जब र् में मिलती हैं, तब उनका आकार कुछ निराला हो जाता है, जैसे रु, रू। र् के साथ ऋ की मात्रा का संयोग व्यंजनों के समान होता है; जैसे—र् + ऋ + र्ऋ। (25वाँ अंक देखो)।
14. ऋ की मात्रा को छोड़कर और अं, अ: को लेकर व्यंजनों के साथ सब स्वरों में मिलाप को बारहखड़ी कहते हैं। स्वर अथवा स्वरांत व्यंजन अक्षर कहलाते हैं : क् की बारहखड़ी नीचे दी जाती है— क, का, कि, की, कु, कू, के, कै, को, कौ, कं, क:।
15. व्यंजन दो प्रकार से लिखे जाते हैं—(1) खड़ी पाई समेत और (2) बिना खड़ी पाई के। ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ, द, र, को छोड़कर शेष व्यंजन पहले प्रकार के हैं। सब वर्णों के सिरे पर एक-एक आड़ी रेखा रहती है, जो ध, झ, और भ में कुछ तोड़ दी जाती है।
16. नीचे लिखे वर्णों के दो दो रूप पाए जाते हैं— अ और व्;भ़ और झ, राा और ण; क्ष और क्ष; ज्ञ और ज्ञ।
17. देवनागरी लिपि में वर्णों का उच्चारण और नाम तुल्य होने के कारण जब कभी उसका नाम लेने का काम पड़ता है, तब अक्षर के आगे ‘कार’ जोड़कर उसका नाम सूचित करते हैं; जैसे—अकार, ककार, मकार, से अ, क, म का बोध होता है। ‘रकार’ को कोई-कोई ‘रेफ’ भी कहते हैं।
18. जब दो या अधिक व्यंजनों के बीच में स्वर नहीं रहता, तब उनको संयोगी वा संयुक्त व्यंजन कहते हैं; जैसे—क्य, स्म, त्र। संयुक्त व्यंजन बहुधा मिलाकर लिखे जाते हैं। हिंदी में प्राय: तीन से अधिक व्यंजनों का संयोग होता है; जैसे—स्तंभ, मत्स्य, माहात्म्य।
19. जब किसी व्यंजन का संयोग उसी व्यंजन के साथ होता है, तब वह संयोग द्वित्व कहलाता है, जैसे—कक्का, सच्चा, अन्न।
20. संयोग में जिस क्रम से व्यंजनों का उच्चारण होता है, उसी क्रम से वे लिखे जाते हैं; जैसे—अंत, यत्न, अशक्त, सत्कार।
21. क्ष, त्र, ज्ञ, जिन व्यंजनों के मेल से बने हैं उनका कुछ भी रूप संयोग में नहीं दिखाई देता; इसलिए कोई-कोई उन्हें व्यंजनों के साथ वर्णमाला के अंत में लिख देते हैं। क् और ष के मेल क्ष, त् और र के मेल से त्र और ज् और ञ के मेल से ज्ञ बनता है।
22. पाई (।) वाले आद्य वर्णों की पाई संयोग में गिर जाती है; जैसे प् + य = प्य, त् + थ = त्थ, त् + म् + य = त्म्य।
23. ड, छ, ट, ठ, ड, ढ, ह, ये सात व्यंजन संयोग के आदि में भी पूरे लिखे जाते हैं, और इनके अंत का (संयुक्त) व्यंजन पूर्व वर्ण के नीचे बिना सिरे के लिखी जाती है; जैसे—अङ्क, उच्छ्वास, टट्टी, मट्ठा, हड्डी, प्रह्लाद, सह्याद्रि।
24. कई संयुक्त अक्षर दो प्रकार से लिखे जाते हैं, जैसे—क्+क = क्क; क्क; क् + व = क्व, क्व, ल् + ल = ल्ल, ल्ल, क् + ल = क्ल, कल, श् + व = श्व, श्व।
25. यदि रकार के पीछे कोई व्यंजन हो तो रकार उस व्यंजन के ऊपर, यह रूप ( ि) धारण करता है, जिसे रेफ कहते हैं, जैसे—धर्म, सर्व, अर्थ। यदि रकार किसी व्यंजन के पीछे आता है, तो उसका रूप दो प्रकार का होता है— (अ) खड़ी पाईवाले व्यंजनों के नीचे रकार इस रूप ( ्र) से लिखा जाता है; जैस वक्र, भद्र, ह्रस्व आदि। (आ) दूसरे व्यंजनों के नीचे उसका यह रूप ( ्र) होता है; जैसे—राष्ट्र, त्रिपुंड, कृच्छ्। (सू.—ब्रजभाषा में बहुधा र्+य का रूप र्य होता है, जैसे मार्यो, हार्यो।)
26. क् और त मिलकर क्त और त् तथा त मिलकर त्त होता है।
27. ङ, ञ, ण, न्, म् अपने ही वर्ग के व्यंजनों से मिल सकते हैं; पर उनके बदले में विकल्प से अनुस्वार आ सकता है; जैसे—गङ्गा = गंगा, चञ्चल—चंचल, पण्डित = पंडित, दन्त = दंत, कम्प = कंप। कई शब्दों में इस नियम का भंग होता; जैसे—वाङ्मय, मृण्मय, धन्वंतरि, सम्राट्, उन्हें, तुम्हें।
28. हकार से मिलनेवाले व्यंजन कभी-कभी भूल से उसके पूर्व लिख दिए जाते हैं; जैसे चिन्ह (चिह्न), ब्रम्ह (ब्रह्म), आव्हान (आह्वान), आल्हाद (आह्लाद) इत्यादि।
29. साधारण व्यंजनों के समान संयुक्त व्यंजनों में भी स्वर जोड़कर बारहखड़ी बनाते हैं; जैसे क्र, क्रा, क्रि, क्री, क्रु, कू्र, क्रे, क्रै, क्रो, क्रौ, क्रं, क्र:। (देखो 14वाँ अंक)