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कविता का सारांश
भारत देश की महिमा अपार व अगाध है। इसका अतीत समृद्ध, संपन्न व गौरवशाली है। भारत ने दुनिया में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके सभी को जागृत किया है। विश्व को संगीत की अनमोल धरोहर दी है। संसार को प्रेम, दया, सत्य, शील, अहिंसा, करुणा, मानवता तथा शांति जैसे मानवीय गुणों का पाठ पढ़ाया भारतमाता के वीर पुत्रों ने भारत की गरिमा को गौरवान्वित करने का कार्य किया। भारतीयों को अपने अतीत के गौरव को कदापि नहीं भूलना चाहिए। प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह देश की गौरवशाली अस्मिता को बरकरार रखने के लिए सदैव तत्पर रहे।
शब्द संसार
शब्दार्थ
उपहार – भेंट हीरक हार – हीरों का हार
आलोक – प्रकाश व्योम – आकाश
तम – अँधेरा संसृति – संसार
विपन्न – निर्धन टेव – आदत
यवन – यूनानी
मुहावरा
निछावर करना – अर्पण करना, समर्पित करना
वाक्य : सैनिक अपने प्राण भारतमाता पर निछावर कर देते हैं।
भावार्थ
हिमालय के आँगन में उसे, किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक हार ।
अर्थ : कवि भारतवर्ष की महिमा का गुणगान करते हुए कहते हैं कि सूर्य सबसे पहले अपनी किरणों की भेट हिमालय के आँगन में स्थित भारतवर्ष को देता है। सुबह हँसकर भारत वर्ष का अभिनंदन करती है। प्रातः काल में सूर्य की किरणे जब हिमालय पर पड़ती है तब उस पर जमी बर्फ हीरे की भांति चमकने लगती है। उसे देखकर ऐसा लगता है, मानों भारत वर्ष ने हीरों का हार पहन रखा हो।
जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक ।
अर्थ : कवि प्रसाद जी कहते है कि सबसे पहले ज्ञान का उदय भारत में हुआ अर्थात सबसे पहले हम जागरूक हुए और इसके बाद हमने सारे विश्व को जागरुक किया। ज्ञान के प्रकाश से आकाश तक फैला हुआ अज्ञानता का अंधकार नष्ट हो गया। संपूर्ण सृष्टि उस प्रकाश से प्रकाशित हो उठी । सारे संसार का अंधकार मिट गया और लोग शोकरहित हो गए।
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम संगीत । ……
अर्थ : कवि का कहना है कि सबसे पहले विद्या की देवी सरस्वती की कृपा भारत पर हुई। संगीत की देवी सरस्वती ने अपने कोमल हाथों में प्रेम के साथ वीणा धारण की। उनके वीणा वादन से सात नदियों के प्रदेश प्राचीन आर्यवर्त (उत्तरी भारतवर्ष) में संगीत के सात स्वर गूंज उठे और सामवेद संगीत की रचना हुई।
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षुहोकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम ।
अर्थ : कवि भारत के अतीत का प्रभावपूर्ण चित्रण करते हुए कहते हैं कि भारत के महान पूतों ने शस्त्रों के बलपर जीत हासिल नहीं की बल्कि धर्म के रास्ते पर चलकर लोगों के दिलों को जीता। गौतम बुद्ध और महावीर जैसे महान पुरुषों ने समस्त संसार में शांति का संदेश फैलाया। सम्राट अशोक ने राजसी सुख छोड़ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर बौद्ध भिक्षु बन गए थे और घर-घर घूमकर मनुष्यों को दया भाव को सीख देने लगे।
‘यवन’ को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्णभूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि भारत वह देश है जहाँ पृथ्वीराज चौहान जैसे राजा ने मोहम्मद गोरी को लगातार १६ बार युद्ध में पराजित करने के बाद भी दया की भावना दिखाते हुए उसे जीवन दान दिया। सम्राट अशोक के भेजे अनेक भिक्षुओं चीन देश में जाकर धर्म का प्रचार किया। बौद्ध भिक्षुओं ने बर्मा के लोगों को बौद्ध धर्म की शिक्षा दी और बौद्ध धर्म के तीन रत्नों बुद्ध संघ धम्मं’ का ज्ञान से अवगत कराया। श्रीलंका को ‘पंचशील (अहिंसा, चोरी न करना, सत्य, ब्रम्हचर्य, और अपरिग्रह)’ के सिद्धांत से अवगत कराया।
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं । ……
अर्थ : कवि प्रसाद जी कहते हैं कि भारत को प्रकृति अनोखी व निराली है। यहाँ की प्रकृति इतनी उदार है कि उसने इतना सब कुछ दिया है। कि हमें किसी से कुछ माँगने की जरूरत ही नहीं पड़ी। हमारी भारत भूमि की कृपा हमेशा हम पर बनी रही। हमें कभी भी किसी से कुछ माँगने या छीनने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। हम सब आर्य संतान है, यहाँ पर हम किसी अन्य स्थान से नहीं आए थे बल्कि इसी पवित्र देश में पैदा हुए, यही हमारी जन्मभूमि हैं।
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि भारतमाता के पुत्र चरित्रवान रहे हैं। हमारी भुजाओं में शक्ति रही है और हम हमेशा लोगों से नम्रतापूर्वक व्यवहार करते रहे हैं। हमारे हृदय में देश के प्रति अपार श्रद्धा, देशप्रेम व गौरव की भावना रही है। हम भारतवासियों की विशेषता रही है कि हम किसी को दुखी नहीं देख सके हैं। सदैव दीन-दुखियों की मदद के लिए तत्पर रहे हैं। मानवसेवा ही हम भारतवासियों का परम ध्येय रहा है।
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव ।
अर्थ : देव कवि के मतानुसार भारत देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। हमारे पास धन-धान्य की कमी नहीं थी। इसी कारण दान करने में हम पौछे नहीं हटे। ‘अतिथि देवो भव’ को संकल्पना का भारतवासियों ने पालन किया। भारतमाता के पुत्र वचन को महत्त्व देते थे। जैसा कहते थे, वैसा करते भी थे। उनके वचनों में सत्यता थी, हृदय में तेज था और उनकी प्रतिज्ञा भी अटल हुआ करती थी।
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि आज भी हम भारतवासी अपने अतीत के गौरव को नहीं भूले है। इतने युगों बाद भी हमारा भारत देश और उसके निवासी वैसे ही है। आज भी हमारी रगों में वही रक्त, वही साहस, वहीं शांति एवं वही ज्ञान विद्यमान है। हम आज भी शक्ति व शांति के पुजारी हैं। हम वही दिव्य आर्य संतान है, जिसने वर्तमान भारत में भी भारतीयता को जीवित रखा है।
जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।
अर्थ : कवि कहते हैं कि आज हम सभी भारतवासी देश के गौरव एवं उसकी अस्मिता को बरकरार रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। हमें इस बात का अभिमान है कि भारतवर्ष को पवित्र पावन एवं गौरवशाली बनाए रखने के लिए हम भारतवासी अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए हमेशा से तैयार रहे थे, रहे है और रहेंगे।
सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए –
(१) निम्नलिखित पंक्तियों का तात्पर्य लिखिए
१. कहीं से हम आए थे नहीं __________
उत्तर: भारतीय आर्य वंश के हैं। भारत की भूमि उनकी जन्मभूमि है। इसी पुण्यभूमि के वे मूल निवासी हैं, न कि कहीं से आए हुए विदेशी।
२. वही हम दिव्य आर्य संतान __________
उत्तर: हम आर्यावर्त आर्यों की दिव्य संतान हैं। हमारी रगों में आर्यों के समान ज्ञान, साहसी रक्त विद्यमान है। हम उन्हीं आर्यों की संतान हैं, जिन्होंने भारतीयता को जीवित रखा है।
(२) उचित जोड़ियाँ मिलाइए –
संचय सत्य अतिथि रत्न
वचन दान हृदय तेज देव
उत्तर:
(३) लिखिए –
१. कविता में प्रयुक्त दो धातुओं के नाम :
उत्तर: हीरा और लोहा
२. भारतीय संस्कृति की दो विशेषताएँ :
उत्तर: दानशीलता और अतीथि देव स्वरूप
(४) प्रस्तुत कविता की अपनी पसंदीदा किन्हीं दो पंक्तियों का भावार्थ लिखिए ।
उत्तर: विद्यार्थियों को उपरोक्त अर्थ का अवलोकन कर कोई दो पंक्तियों का चयन करना चाहिए।
(५) निम्नलिखित मुद्दों के आधार पर पद्य विश्लेषण कीजिए :
१. रचनाकार का नाम
उत्तर: जयशंकर प्रसाद
२. रचना का प्रकार
उत्तर: कविता
३. पसंदीदा पंक्ति
उत्तर:
हिमालय के आँगन में उसे,
किरणों का दे उपहार;
उषा ने अभिनंदन किया,
और पहनाया हीरक हार ।
४. पसंदीदा होने का कारण
उत्तर: सूर्योदय होने से कुछ पल पहले उषा रूपी किरणों का हिमालय के आँगन में आगमन हुआ। भारत देश में उदित होने वाली उषा अपने साथ सुनहरी किरणों को लेकर आई। मानो वह भारत का अभिनंदन कर उसे हीरों का हार पहना रही हो। इसमें कवि ने भारत की प्राकृतिक सुषमा का मनोहारी वर्णन किया है। प्रकृति का दिखाई देने वाला दृश्य अद्भुत एवं अतुलनीय है । अतः यह पंक्तियाँ मुझे अत्यंत प्रिय है है। भारत की प्राकृतिक सुषमा का जो मनोहारी वर्णन किया है, वह अद्भुत व अतुलनीय है। अतः यह पंक्तियाँ मुझे अत्यंत प्रिय हैं।
५. रचना से प्राप्त संदेश
उत्तर: इस कविता से हमें यह संदेश प्राप्त होता है कि हमें अपने अतीत के गौरवशाली इतिहास को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमें अपने देश पर गर्व होना चाहिए और इस पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।