डॉ. लता अग्रवाल

डॉ. लता अग्रवाल

शिक्षा  - एम  ए  अर्थशास्त्र. एम  ए  हिन्दी, एम एड. पी एच डी  हिन्दी।


प्रकाशन - शिक्षा. एवं साहित्य की विभिन्न विधाओं में 53  पुस्तकों  का  प्रकाशन, लगभग 400 प्रपत्र, कहानी, कविता, लेख  प्रकाशित, आकाशवाणी  में पिछले 9 वर्षों से रचनाओं का प्रसारण, दूरदर्शन पर संचालन।


सम्प्रति- पिछले 22 वर्षों से निजी महाविद्यालय में प्राध्यापक एवं प्राचार्य।

निवास 73 यश बिला भवानी धाम फेस - 1 , नरेला शंकरी, भोपाल - 462041

1. मैं ही कृष्ण हूँ


कॉलेज के गेट पर पहुँचते ही कुछ मनचलों ने प्रतिभा का दुपट्टा खींच लिया।


"तुम आ गई द्रोपदी!", कहते हुए उनमें से एक ने प्रतिभा के दुपट्टे को अपनी कलाई पर लपेट लिया।


"वाह भई ! कलयुग में द्रोपदी का चीर हरण।"


"हा! हा! हा! " सभी कुटिलता से अट्टाहस करने लगे।"


"तुम दुःशासन हो या नहीं मैं नहीं जानती। मगर द्रोपदी के चीरहरण के बारे में तो जानते ही होंगे ।" प्रतिभा ने पलटकर जवाब दिया


"अरे यार! ये द्रोपदी तो बोलना भी जानती है।"


"स्वागत है द्रोपदी ! इस द्युत क्रीडा में तुम्हारा।"


"तुम भूल गये शायद जब द्रोपदी का आँचल दुशासन के हाथ आया तो कैसा महाभारत मच गया था।"


"अच्छा! तो आप महाभारत मचाना भी जानती हैं पांचाली!"


"अरे! नहीं ये नहीं इनके सखा कृष्ण मचाएंगे महाभारत।"


"ओहो! कहाँ हैं सखा कृष्ण , बुलाओ भाई हम भी देखें" कहते हुए वे प्रतिभा के और नजदीक आने लगे।


अगले ही पल सारे युवक धराशाई पड़े थे, तमाशबीन प्रतिभा की मार्शल आर्ट में दक्षता की प्रशंसा कर रहे थे | ।

2. सत्य की अग्नि परीक्षा

"अरे भाई कौन हो तुम और शहर से दूर यहाँ जंगल में ...इस झोपड़े में क्या कर रहे हो ? " युधिष्ठिर ने वन में भ्रमण करते हुए एक झोपड़े के बाहर बैठे उदास , लाचार से दिख रहे उस व्यक्ति से पूछा।

 "मैं सत्य हूँ ,आज कल यहीं रहता हूँ । यही मेरा झोपड़ा है ।" 

"आश्चर्य है तुम यहाँ हो ,..तुम्हें लोगों के दिलों में रहना चाहिए...। "

" वहाँ तो धर्मराज , झूठ ने अपना स्थायी निवास बना लिया है और मुझे खोटे सिक्के की तरह बाहर निकाल फैंका है।"

" ओह ! यह तो बुरी खबर है तो तुम समाज में रह सकते हो ।"

"वहाँ सब मुझसे नफरत करते हैं । "

"इसकी कोई वजह होगी। "

"हाँ ! वजह है मैं आईने की भांति लोगों को उनकी सही सूरत दिखाता हूँ। "

"तो उसमें हर्ज क्या है ? यह तो अच्छी बात है। "

"धर्मराज ! आज भ्रष्टाचार, चार सौ बीसी, रिश्वत खोरी आदि के इतने खतरनाक कॉस्मेटिक्स के लेप बाजार में आ गये हैं, जिनके प्रयोग से लोगों के चेहरे इतने भयावह हो गए हैं कि वे अपना चेहरा देखना पसंद नहीं करते । "

"तो कार्यालयों में चले जाओ वहाँ तो तुम्हारा होना बहुत आवश्यक है। "

"गया था धर्मराज ...मगर एक ही पल में उठाकर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया गया।"

"ओह ! तब तो पक्का तुम्हें राजनीति में जाना चाहिए।"

" राजनीति ...! तो अब देश में कहीं बची नहीं । कूटनीति का ही सर्वत्र साम्राज्य है। और कूटनीति को तो सदा ही से मुझसे परहेज रहा है।"

" बड़े आश्चर्य की बात है मैं तो सत्य की पताका लेकर ही स्वर्ग तक पहुंचा था।"

" आप भूल रहे हैं धर्मराज, वह द्वापर युग था आज कलयुग है।"

"तब तो पक्का तुम संचार विभाग (मीडिया) में चले जाओ वहाँ लोग तुम्हें सिर माथे बैठाएंगे । "

 " वहाँ मेरे लिए नो एंट्री का बोर्ड लगा है धर्मराज।"

"ऐसा क्यों भला...? "

"क्योंकि मैं उन्हें विज्ञापन शुल्क जो नहीं दे पाता।"

3. गरीब का लंच बॉक्स


“क्या हो रहा है ये सब हाँ ! चलो सब अपनी - अपनी जगह पर बैठो।”


टीचर ने क्लास में पहुँचते ही देखा बड़ा शोर मचा हुआ है। सभी बच्चे अपने स्थान से अलग खड़े हैं। मीरा खड़ी रो रही है। सभी बच्चे उसे चोर- चोर कहकर चिढ़ा रहे हैं।


“ सर ! मीरा ने निक्कू का लंच बॉक्स चुरा लिया।:


“क्यों मीरा ?”


“नहीं सर ! जे मेरा है , मैं सच्ची के रई।” मीरा अपने हाथ में लंच बॉक्स को कस कर पकड़े थी।


“दिखाना अपना लंच बॉक्स।”


टीचर ने देखा इतना मंहगा लंच बॉक्स ...ये तो तुम्हारा नहीं हो सकता। 


“मेरा है सर मेरे पप्पा लाये हैं।


“तुम लोग.. , ठीक से खाने को तो हैं नहीं , इतना अच्छा लंच बॉक्स अफोर्ड नहीं कर सकती ...झूठ बोलती हो। सरकारी योजना के तहत इतने अच्छे प्रायवेट स्कूल में प्रवेश मिल गया वरना तुम लोग तो ...। “


“सर! मेरी बात मानो, जे मेरा ही डिब्बा है, मैं झूंठ नई बोल रई।”


“अगर सच कह रही हो तो बताओ क्या है तुम्हारे लंच बॉक्स में ?”


मीरा खोमोश हो गई।


“बताओ जब तुम्हारा लंच बॉक्स है तो तुम्हें पता होना चाहिए क्या है उसमें ? जैसे निक्कू बतायेगा क्या है उसके लंच बॉक्स में ?”


“हुंम्म ... ! मम्मी से सुबह चीज रोल रखने को कहा था वही होगा।” 


निक्कू अकड़ता हुआ बोला।


“अब तू बता ,....(मीरा खामोश थी) ये ऐसे नहीं बोलेगी, ला लंच बॉक्स खोलकर देखते हैं, अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जायेगा।”


“नहीं, मैं अपना डिब्बा खोलने नहीं दूंगी।”


“मुझे मना करती है ...तब तो पक्का तू ही चोर है, कहते हुए टीचर ने मीरा को जोर से थप्पड़ जड़ दिया थप्पड़ की झनझनाहट से लंच बॉक्स मीरा के हाथ से छूटकर जमीन पर जा गिरा। लंच बॉक्स खुलकर जमीन पर फ़ैल गया था उसमें से बासी रोटी के टुकड़े जमीन पर मीरा की बेगुनाही का सुबूत दे रहे थे।


क्लास के बाहर निक्कू का ड्रायवर खड़ा था ,


“सर जी ! यह निक्कू बाबा का लंच बॉक्स , घर पर ही भूल आये थे, देने आया हूँ।”