डॉ.अस्मि पाण्डेय
'एक कली की चिंता'
'एक कली की चिंता'
एक कली ने चिंता जताई,
कहने लगी, आज मैं हूँ कितनी
आजाद, बहुत ही खुश हूँ।
कभी झूमती हूँ हवा के संग
तो
कभी लुक-छुप जाती हूँ पत्तों के बीच।
कर सकती हूँ वो सब
जो मैं करना चाहती हूँ।
मगर क्या मेरा भविष्य ऐसा
ही होगा? शायद नहीं।
जब मैं एक फूल बन जाऊँगी,
तब मुझे कोई तोड़ ले जाएगा,
मेरा वजूद कहीं खो जाएगा।
न जाने कहाँ मुरझायी, बेजान -सी पड़ी रहूँगी।
मैं चाहकर भी अपने अतीत में न
लौट पाऊँगी, कभी न लौट पाऊँगी।