डॉ. रचनासिंह "रश्मि"
1. तनया हूँ
विषय पुरातन
किन्तु अध्याय
नया हूँ
इच्छा नहीं
अनिच्छा हूँ
अनगिनत,सम्बन्ध मेरे
पर सम-बन्ध
एक भी नहीं
क्योंकि!
तनय नहीं
तनया हूँ
बँटी हुई हूँ
खंड-खंड
हर खण्ड में
समर्पण/अखण्ड हूँ
कर्तव्य मेरे
हैं कई/अधिकार
एक भी नहीं
क्योंकि!
तनय नहीं
तनया हूँ
दया/करूणा
शील और लज्जा हूँ
स्नेह की अस्थि
नेह की मज्जा हूँ
धैर्य/धीरज
त्याग की मूरत
प्रेम का धागा कच्चा हूँ
क्योंकि!
तनय नहीं
तनया हूँ
स्वर्ण थी मैं
तपकर हो गई कुंदन
फिर भी मेरा
मोल नहीं
मेरे हिस्से में क्यों!
इतना सहना
नहीं है घर मेरा
धन हूँ पराया
ये है कहना
क्योंकि?
तनय नहीं
तनया हूँ ....
2. सीने में जो दर्द भरा है
सीने में जो "दर्द भरा है,
हम किसको बतलायें।।
सबने छोड़ा साथ हमारा,
किस किस को समझाएं ।।
दर्द बांटता मिला जो साथी,
आई महक प्यार की आंधी ।।
प्यार मिला था दर्द मिटा था ,
बोलो हम क्यों ना इतरायें।1।
सुख आया था साथी बन कर,
साथ छोड़ कर चला गया है।।
नए सृजन के"बीज रोपकर,
एहसासों को"चला गया है।।
उसकी खुशबू हैं सांसो में,
उसको हम"कैसे बिसरायें।2।
हम जीते थे"जिन सपनों में,
हंसते-गाते अपनों में
उन सबने तो"छोड़ दिया है,
दर्द में है "अहसास तुम्हारा
हम तुमको कभी भूल ना पाएं।3।
तुमसे यह कैसा!!बंधन है ,
सांसो में "मधु स्पंदन है।
साथ चलो पगडंडी पर तुम,
प्यार तुम्हें मेरा बंदन है।।
तुम मुझको "इस पथ पर पर लाएं ,
क्यों न हम तेरा साथ निभाए।४।
मजबूर बेटियां
कितनी !मजबूर बेटियां
दंरिदगी को झेलती
शर्मिंदगी से गुजरती
लहूलुहान होती हैं
बेटियां
करके निर्वस्त्र
नोचते हैं छातियां
देते हैं गालियां
कितनी! बेबस
लाचार बेटियां
रोती बिलखती
हाथ जोड़ती
देकर दुहाई
इंसानियत की
चीखती हैं बेटियां
जिस्म नहीं रुह तक
हैवानियत झेलती
इतना सब सहकर
कैसे ! जी पायेंगी
ये बेटियां
कहां !हैं वो
जो देखते हैं
मंजर ऐसा
जहां इंसानियत
होती है रूसवा
पूछती ? हैं बेटियां