ऋतिका 'ऋतु'

नाम : नाम : ऋतिका 'ऋतु'

पद : एम. ए. हिंदी साहित्य (दिल्ली विश्वविद्यालय

शहर : नोएडा

शिक्षा : एम. ए. हिंदी साहित्य (दिल्ली विश्वविद्यालय

शहर : नोएडा

1. भावना विजयी हुई है!


शब्द के आधार चाहे ध्वंस का परिरंभ कर लें।

वाक्य भी मेरे भले फिर अंत से आरंभ कर लें।

व्याकरण के व्योमचुंबी नेम धू-धूकर जलें यदि,

साहसी कब हैं कि भावों पर विजय का दंभ कर लें!


चक्रवर्ती है,चिरंतन,चार युग से चिरजयी है!

भावना विजयी हुई है!


हम निरी अभिव्यक्ति से कुछ भी अधिक होंगे नहीं क्या?

जो कभी कल थे नहीं कल आधुनिक होंगे वही क्या?

क्या हमीं कल लुप्त होकर आज में ढलते रहेंगे?

और जो ढलते रहे तो प्राकृतिक होंगे कहीं क्या?


एक उत्तर के लिए प्रश्नावली पलती गई है।

भावना विजयी हुई है!


सत्य का सतही धरातल बोलता है,"झूठ है यह!

भावना की जड़ नहीं,पतझड़-शरद का ठूँठ है यह।"

सत्य की इस भूमि पर चिरकाल की सत्ता नहीं पर

परशु-प्रज्ञा को कदाचित आक्रमण की छूट है यह!


किंतु कट जाए सहज ही,कौन ऐसा निश्चयी है?

भावना विजयी हुई है!

2. पूछते हैं नित्य हमसे 

वल्लि के वे पत्र क्रम से,

“हर बरसती बूँद बाँचे,

हैं विषमताएँ चुनाँचे

वेग से आकाश चलता।

कौंधती कैसी कुशलता?”

वात वह विक्षिप्त होकर

भागती भयभीत भ्रम से!


खोल अंबर में हथेली

घेर ली धरती अकेली,

अंबुदों की छाँह माँगी,

भावना में भीग भागी।

भ्रांति तम को भाँपती है।

भ्रांति तृण सी काँपती है।

है यहीं स्थिर पत्र पाकर

या कहीं विश्रांत श्रम से!