सपना

सपना (शोध छात्र)

नई दिल्ली । 

1. परंपराएँ और बदलाव

परंपराएँ जिनसे हम बंधे, वो हैं एक सुंदर कड़ी,  

लेकिन बदलती सोच का, ज़रूरत है एक नई बंदी।  

लड़कियाँ उठती हैं अब, अपने हक के लिए खड़ी,  

पारंपरिक ढ़ांचे को तोड़कर, लिखती हैं एक नई गड़ी।  


जब कहा गया 'नहीं', तब कहा उनने 'क्यों नहीं?'  

हर बंधन को तोड़कर, वो चल पड़ीं अपनी राही।  

स्वप्नों की रौशनी में, वो देखतीं अपनी पहचान,  

परंपरा की दीवारों को, वो कर रहीं बर्खास्त।  


माँ की कहानियों में, छिपा था एक नया आसमान,  

लेकिन लड़कियों ने कहा, "क्यों नहीं हमें मिलें अपने अरमान?"  

स्वतंत्रता की चाहत में, वो बुनतीं अपने सपने,  

हर बाधा को पार कर, खुद को पहचानतीं नई गुमान।  


सकारात्मकता का बाग, हर दिल में वो बुनतीं,  

संवेदनाओं के साथ में, अपने हक के लिए लड़तीं।  

परंपराओं की आंचल में, वो खुद को ढूंढतीं,  

बदलाव की इस धारा में, अपने कदम बढ़ातीं।  


हर पीढ़ी से मिली सीख, अब वो खुद को कहतीं,  

"हम भी हैं एक आवाज़, जो सदियों से सहेजी गईं।  

जब भी समाज कहे 'ठहरो', हम कहें 'आगे बढ़ो',  

पारंपरिक सोच को चुनौती, हम सब मिलकर करें।"  


आओ, हम सब मिलकर चलें, बदलाव की इस नई राह,  

लड़कियों की इस मुहिम में, बसी है हर एक चाह।  

क्योंकि जब हम मिलकर खड़े होंगे, तब हो सकेगा बदलाव,  

परंपराओं की सीमाओं को तोड़कर, मिलेगा नया सवेरा का अवतार।