सुरज
सूरज बिरादार (रिसर्च स्कालर)
एम. ए.(हिंदी), नेट, सेट।
यूको राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित ।
पुणे ।
1.शुद्ध कविता की खोज
एक दिन मैं निकला घर से
शुद्ध कविता की खोज में
देखता हूं भीड़, मोटर गाड़ी, सड़क
उसे चीरकर मैं पहुंच गया स्विमिंग पूल वाले घर में
जहां दिखती है संगमरमर की फर्श
बड़ा सा आईना जिसमें प्रति पल दिखते हैं काले चेहरे
उस आईने में देखा मैंने बड़ा सा कमरा
कमरे में प्रवेश करके मैंने देखा,
अधेड़ उम्र का लंबोदर आदमी सो रहा है
कमरे में है वह सारी सुख सुविधाएं
जिनके लिए आदमी उम्र गुज़ार देता है
लेकिन वहां मौजूद नहीं थी कविता की आत्मा
न कोई शब्द, न कोई कल्पना...
मैं बैठ गया निराश होकर उस फर्श पर
जिसमें आईने जैसे चमक थी
मैंने गौर से देखा फर्श में अपना चेहरा
चेहरा कुछ काला पड़ गया था
एका एक उस प्रतिबिंब ने कुछ बुदबुदाते हुए कहा
कविता की खोज में तुम यहां आए हो
जहां केवल सत्ता है वासना की पैसों की जाति की
कविता तुम्हें वहां मिलेगी जहां जाओगे तुम चलकर
जब थकेंगे तुम्हारे पैर जब तुम गिर पड़ोगे
तब पल्लवित होगा तुम्हारे मन में कविता का ऑंसू
जब छूटेगी तुम्हारी बस और तुम बैठ जाओगे
कड़ी धूप में निराश होकर तपती ज़मीन पर
तब आंखों से बहकर निकलेगी कविता
जब तुम करोगे बड़े बड़े संस्थानों के मठाधीशों की पूजा
और तुम्हें धक्के मार कर निकाला जाएगा उन्हीं के द्वारा
तब आएगी निकल कर एक कविता तुम्हारे द्वार पर
जब रेलवे स्टेशन की भीड़ में तुम्हें थक्के लगेंगे
और तुम गिर पड़ोगे रेल के बाहर प्लेटफार्म पर
और जाते हुए देखोगे रेल को गंतव्य स्थान कि ओर
तब प्लेटफार्म पर चलकर आएगी एक कविता तुम्हारे पास
कविता आती है असफलताओं के साथ और चली जाती है
जब तुम्हें सत्ता का अहंकार होने लगता है,
जब तुम्हारी मानवता मर जाती है
सत्ता के भोग के साथ तुम नहीं भोग सकते कविता का सुख
कविता आती है दुखों के साथ
कटे हुए हाथ के खून से निकलती है कविता
बादल राग जब होता है तब बरसती है कविता
जब तुम अपनी में खोकर ढूंढते हो तब मिलती है कविता
जब सड़क पर चलते हुए तुम देखते हो
भीख मांगते हुए बच्चे के ऑंखों में आंसू
तब मिलती है तुम्हें शुद्ध कविता
और वह प्रतिबिंब मौन हो गया
मैंने अपना काला शर्ट निकाल कर उस फर्श को ढक दिया
और घर की ओर बढ़ चला...
2.भिखारी
सोचता हूँ, आज भिखारी की क्या अवस्था होगी ?
कहीं सड़क पर तो मौत नहीं हो गई होगी
कोरोना काल में उसके पास क्या मास्क होगा
क्या उसे भी कोरोना ने जकड़ा होगा ?
अगर हाँ, तो ऑक्सीजन कहाँ से लाएगा
कौन उपचार करेगा, कौन बेड दिलाएगा
क्या वो रास्ते पर घुट -घुट के जी रहा होगा ?
वो कब मरेगा आज, कल या परसों
जब मरेगा तब, कौवे पास आकर बैठ जाएंगे
फिर नोच- नोच कर हड्डियों से मांस खाएंगे
कुत्ते आकर मल मूत्र कर जाएंगे
नगर निगम वाले कचरा फेंक जाएंगे
क्या उसका शरीर वहाँ सड़ रहा होगा ?
सौ दिन हो गए लाश अभी भी मेरे घर के सामने है
क्या वो मुझसे कुछ पूछ रही है ?
जिसका उत्तर मेरे पास नहीं है |
3.अफ़्कार (सोच)
सोचता हूॅं कि यह रात सुन्दर है या तुम
या फिर तुम्हारी कोई बात
या फिर तुम्हारी याद
नहीं शायद तुम्हारे ख़्वाब
जो मेरी रात को सुंदर बनाने के लिए व्यस्त रहते हैं।
नहीं शायद मैं ग़लत हुॅं,
शायद मेरे अफ़्कार ही ग़लत है।
सुंदर तो वो आइना है,
जिसमें तुम रोज़ अपने बाल बनातीं हो।
नहीं आइना तो सिर्फ तुम्हारे सुंदरता के साथ सुंदर है,
वरना वह तो महज़ एक कांच का टुकडा है।
सुंदरता तो उन आंखों में भरी है,
जिन आंखों ने तुम्हारी काया को देखा।
नहीं शायद सुंदरता तुम्हारे स्वभाव में है।
या फिर सुंदरता तुम्हारे त्याग में है ।
लेकिन सुंदरता तो तुम्हारे,
वाणी से भी नजर आतीं हैं।
नहीं शायद सुंदरता तो तुम्हारे,
रूह में समाई है जो सब को
आकर्षित होने पर मजबूर करती है।
नहीं नहीं नहीं शायद सुंदरता तो तुम्हारी काया मैं हैं ।
शायद नहीं सुंदरता का अर्थ हि तुम हो
या फिर तुम्हीं सुंदरता का प्रतिबिंब हो ।
बस बहुत हो गया अब तुम ही बताओ
सुंदरता किस में है ?
तुम में या फिर मेरे अफ़्कारो मैं....
4.खत
तेरी यादों के खत आज भी लिखता हूॅं,
बस कल से थोड़े अलग आज है।
पहले की बात ओर थी,
आज कल खतों के जवाब भी आने लगे है।
अब मुझसे ज्यादा खत तो तुम लिखती हो,
और एक मैं, जो बेगार हुं जिंदगी की भागादौड़ में।
शायद समय सारणी में कुछ दिक्कत है,
वरना मैं और तुम भला अलग कभी होते।
चलो छोड़ो अब आदत हो गई है,
लेकिन तुम फिर आदत बिगाड़ने आओगी पता है मुझे।
अब इस पर मैं ख़ुशी मनाऊं या अफसोस,
खैर जाने दो मज़ा आ रहा है।
5. कुछ न कहो
कुछ न कहो
कुछ भी न कहो
ये आँखें सब बोलती है।
तुम कहो न कहो
ये सब कहती है
फिर भी चुप रहती है।
आँखों से ही इशारों में तुम
कह दो ये बात
फिर मुलाकात ।
हम तुम मिले
फिर भी न कहें
वो सारी बातें फिर मुलाकातें ।
आँखों को कहने दो
आँखों में रहने दो
वो सारी बात...
6. मेरी मधुशाला
जग के कोलाहल में
मुझे भी भरने दो प्याला ।
साखी के हाथों से
पीने दो हाला ।।
'सूरज' जीवन मंत्र यही है
बने रहो मतवाला |
7. संदेश मिला मुझे, तुमने अपने अश्रु छिपाए
मैं आँसू की धार बहाता
हृदय क्रंदन से भर जाता
मेरे अवसादों के क्षण कहीं ढल न जाए
संदेश मिला मुझे, तुमने अपने अश्रु छिपाए
क्या है नारी के मन में
जो छुपा रहा जीवन में
फिर चाहे हम अलग हो जाएं पल में
संदेश मिला मुझे, तुमने अपने अश्रु छिपाए
विश्वास यदि नहीं था
फिर जीवन में आना न था
क्या तुम पर इतना भी अधिकार न जमा पाए
संदेश मिला मुझे, तुमने अपने अश्रु छिपाए
8. काश
काश तुम ना होती
काश मैं ना होता
काश ये मिलन ना होता
काश ये दूरियां ना होती
काश ये बारिश ना होती
काश उस बारिश तुम भीगती हुई ना होती
काश ये चांद तुम सा ना होता
काश सूरज मुझमें ना होता
काश ये सब यादें ना होती
काश इन यादों में तुम ना होती
काश ये आंसू ना होते
काश इन आंसूओं पर तुम्हारा नाम न होता
काश ये दिल ना होता
काश इस दिल पर तुम्हारा अधिकार ना होता
काश ये ख़ामोशी ना होती
काश इस खामोशी में तुम्हारी गूंज ना होती
काश तुम ना होती
काश मैं ना होता
काश ये मिलन ना होता
काश ये दूरियां ना होती
9.अपने अपने बापू
बापू बापू की रट लगाए बैठे हो,
आखिर किया क्या है बापू ने ?
कभी बना कर देखा कोई एटम बम; तोपखाना,
कभी लगाकर देखी आग धर्म के नाम की ?
कभी जीतकर दिखाइए कोई जंग हथियार से,
कभी दुश्मन के किले पर की चढ़ाई ?
कभी देखी दागकर बंदूक किसी के सीने पर,
कभी हिंसा को सर्वोपरि रखकर देखा ?
कभी आज़ादी के नाम पर किया कोई खून-खराबा,
कभी किसी भाषण में जनता को जुमलों से किया प्रभावित ?
आखिर किया कौन-सा अनोखा त्याग ; जो बाबू के नारे लगाते हो,
प्रतिवर्ष याद दिलाते हो, नोटों पर छपवाते हो ?
राष्ट्रपिता, महात्मा, संत की उपाधि देते हो,
बोलो क्यों, आखिर क्यों बापू की रट लगाए बैठे हो ?
एक क्षण रूको, सुनो; सोचो क्या तुम में भी बापू है ?
अगर नहीं, तो यह रट लगाना बंद करो ।
10. मंथन
सीढ़ीयों से आता कोई दिखाई दे,
एक परछाई जो हो अनजानी सी ।
जैसे कोई खेतों में आग लगा कर भूल जाए,
उसे हमेशा के लिए बुझाना ।
हम चले एक दिन पश्चिम की ओर
फिर कहीं जाकर कोई सूरज उग आए ।
हम कूदे दीवारों से और फिर चलने लग जाएं आगे
दीवार इतनी छोटी हो जाए कि हम कूदते रहे हर रोज़ ।
हम तन कर सो जाएं घर में और फिर उठे तो खंडहर में
पाए अपने आप को कहीं अलास्का में किसी सुबह या रात में ?
दीवारों पर लिखे कुछ और फिर से सो जाएं,
फिर चले स्वप्न में काले बादलों की ओर ख़ून की बूंदे पाने ।
जाए कभी वापस लौट कर अपने घर को किचन में पानी पीने,
पानी पीना कोई साधारण बात नहीं ? शायद है ? या फिर नहीं ?
फिर लौटे रेलवे स्टेशन पकड़े गाड़ी इलाहाबाद की पहुंचे वाराणसी,
डुबकी लगाए मॉं की गोदी में पहुंचे रामेश्वर ।