विभा नायक
1. जागो नारी जागो!
यह वक्त है, आवाज उठाने का
यह वक्त है अपना शक्ति दिखाने का,
बहुत कर ली तुम पुरुषों पर विश्वास।
मौका पाकर ये तुम्हें बनाते हैं, अपना हवस का शिकार।
यह जानवरों से भी बदतर है,
तुम्हें कदम उठाना होगा।
इस हैवानों से सभी नारियों को बचाना होगा,
इन भूखे भेड़ियों के बहकावे में ना आना होगा।
अपनी दृष्टि सूक्ष्म बनाना होगा,
नारी तुम्हें आत्मरक्षा अपने आप ही करना होगा।
इन अपमान का बदला लेना होगा,
इन दरिंदों को इनका औकात दिखाना होगा।
पुरुष प्रधान इस भारत में,
अपना सर्वोच्च स्थान बनाना होगा।
जागो नारी जागो,
इन पुरुषों से दो दो हाथ करना होगा।
अपनी बुद्धि, विवेक और शक्ति से इन्हें परास्त करना होगा,
जब तक अपने मकसद में कामयाब ना हो।
तब तक न चैन का सांस लेना होगा,
इनके हैवानियत से ना डरना होगा।
अपनी आवाज बुलंद करना होगा,
इन पुरुषों को यह एहसास दिलाना होगा।
आधुनिक नारी का परचम लहराना होगा,
अपने पैरों पर खड़ा होकर दिखाना होगा।
जागो नारी जागो,
स्वयं अपना प्रतिनिधित्व करो।
आत्मनिर्भर बनो आत्मरक्षा करो,
क्यों नारी क्यों तुम सोई हो,
किसके प्यार में खोई हो!
प्यार नहीं बहकावा है,
सिर्फ एक दिखावा है।
तुम्हें अपने मां-बाप से प्यार करना होगा,
बाबू, सोना के चक्कर में न पड़ना होगा।
इन दरिंदों से दूर रहना होगा,
अपनी चेतना को विकसित करना होगा।
जागो नारी जागो,
अपना अस्तित्व स्थापित करो।
2 . बेटियाँ
जब घर में पैदा होती हैं बेटियां,
तो सबके चेहरे के रंग को उतरते हैं क्यों?
चाहे वह दादी हो,
चाहें वो बुआ हो।
क्यूं वो भूल जाती है,
मैं भी एक बेटी हूं ।
ख़ुद एक बेटी होकर,
एक बेटी का विरोध क्यूं ।
तमाम प्रकार की बाते,
वो मन में लाती हैं क्यूं।
खुद एक लड़की होकर,
एक लड़की पैदा होने पर।
इतना दिमाग लगाती है क्यूं,
दादी गुस्से से लाल हो कर ।
ईश्वर पर आरोप लगाती है क्यूं,
कभी लड़की के मां पर।
तो कभी लड़की के पिता पर,
गुर्राती है क्यूं ,
खुद एक लड़की होकर।
एक लड़की से इतना घृणा करती है क्यूं,
कोई कुछ बोलता है तो।
इतना झल्लाती है क्यूं,
मैं पूछती हूं आज।
लड़कियों को इतना बोझ क्यूं समझती है आप ,
मां का सपना।
पिता की अभिमान होती हैं बेटियां।
घर की इज्जत,
भाइयों की जान होते हैं बेटियां।
सृष्टि को जीवित रखने की ,
समान होती हैं बेटियां।
आपके बेटों से,
जिम्मेदार होती हैं बेटियां ।
मां लक्ष्मी का,
वरदान होती हैं बेटियां।
आप के बेटे से समझदार होती है बेटियां,
सबसे अच्छा व्यवहार बनाने की।
हकदार होती हैं बेटियां ,
कभी पत्नी।
कभी मां बनकर ,
परिवार को संजोते हैं बेटियां।
पूरे घर की संचालक होती हैं बेटियां,
बड़ी दयालु और ।
ईमानदार होती हैं बेटियां,
खुदा के दस रहमतों की।
हकदार होती हैं बेटियां,
ईश्वर का दिया ।
उपहार होती है बेटियां,
घर की रौनक,
होती हैं बेटियां।
बड़े सौभाग्य से होती हैं बेटियां,
घर में मेहमान!
होती हैं बेटियां ।
सब के मुकद्दर में,
कहां होती हैं बेटियां।
खुदा को जो घर पसंद आए ,
वहां होती हैं बेटियां।
3. समय
मुड़ मुड़ के देखती हूं ,
अपने अतीत को!
किंतु,वर्तमान वक्त का हवाला देकर ,
देखने नही देता !
परंतु , वर्तमान को जब देखती हूं गौर से ,
तो भविष्य का स्वप्न चैन से जीने नहीं देता ....!
4. नारी
क्यों नारी क्यूं तुम ऐसी हो,
खुद से जन्मी इस दुनिया में।
असहाय बन बैठी हो,
एक स्त्री होकर भी।
एक तरुणी के प्रयोजन में बाधा बन बैठी हो,
कैसे दोषी ठहराऊ मैं उन पुरुषों को।
जो पिता की भूमिका में आते हैं,
तुमसे ज्यादा वो हमें मान सम्मान दिलाते हैं ।
हर जगह वह मेरे पीछे पीछे जाते हैं,
मेरी मंजिल तक पहुंचाते हैं।
कैसे दोषी ठहराऊ मैं उन पुरुषों को,
जो भाई ,पिता ,पुत्र के भूमिका में आते है ।
उनसे पहले मैं तुम्हें दोषी पाई हूं,
अपने मंजिल को पाने में मैं तुम से झूठी उम्मीद लगाई हूं।
तुम खुद से जन्मी इस दुनिया में,
खुद से नफरत करती हो।
मां या सांस से पहले,
तुम भी एक पुत्री की भूमिका निभाई हो।
इस दुख ,दर्द और पाबंदी से तुम भी बच ना पाई हो,
क्यूं भूल गई तुम ।
तुम भी एक नारी हो,
याद करो उस वक्त को श्यामा।
जब तुम्हारी मां एक छोटी सी गलती पर,
तुम पर भी प्रतिबंध लगाई होगी।
उस क्षण क्या बीता होगा तुम्हारे तन मन पर,
महसूस करो,अनुभूत करो।
उस अवसर ,उत्सव , काल, घड़ी छन, छीन ,मौका का,
मानवी, तब तुम भी असहाय बन बैठी होगी।
पर कौन हो तुम ,क्यों ऐसे ही हो,
फिर से यह प्रश्न दोहराती हूं?
खुद से जन्मी इस दुनिया में,
मात्र एक उत्तर पाती हूं ।
अपने सारे, इश्ति_ याक,(ख्वाइश ) लालसा के साथ ,
मैं भी नभ में उड़ जाना चाहती हूं।
मैं भी नभ में उड़ जाना चाहती हूं?