विनीता पांडे

श्रृंग भृंग मद ताल को लिये‌ ऋषि प्रयाग को आए हैं

हर रंग -रूप भेष -भूषा जाती-भेद मिटाएं,

बरसों -बाद सब मिलकर कुंभ नहाने आयें,


नागा भस्म लगाए,शिव धुन में रमणाये

मनस्वी अपनी अधिचेतनता,पाप को गंगा में बहाये।


श्राद्ध करत अपने पितरों की ,यज्ञ हवन करवायें,

नाद करत ,अंजन करत, आरती गुन गाये


कहे मां गंगा पाप धोये ,वही तद् पानी भर लाये।