अल्पना राज (शोधार्थी) कपिलवस्तु

युग की  संचित करुणा नभ मे 

सारे जग को स्वर्ग बनाओ 

रही चिता ,सब जग चिंतन की,

झिलमिल स्वरणो को चमकाओ ,

नक्षत्र् दिशा मिलि  संकट तारे ,

ऐसे जुग  को आज सवारो ,

घटा रही बस अनल बरस के 

अम्बर जग को नहलाओ 

युग की  संचित करुणा नभ मे ....

सारे जग को स्वर्ग बनाओ

भटक रहा सारा जल - जीवन जैसे 

पृथा लोक मे दीप जलाओ ,

रहा तरस धरा - आसमान तक 

वृक्ष से सारा ध्वनि महकाओ 

नाद ताल की  चौखट से सब जन का,

सुंदर,  स्वच्छ, सुशील का 

इक  व्यापार जैसा आकार् बनाओ 

रहे विश्व् की  स्वतन्त्र् अवस्था 

ऐसा  अपना भारत देश बनाओ 

युग की  संचित करुणा नभ मे .....

सारे जग को स्वर्ग बनाओ