गरिमा सिंह (शोधार्थी ) कपिलवस्तु

माँ एक एहसास हो तुम 

माँ एक सम्मान हो तुम 

माँ से मिलता संस्कार 

तुम जो हमे सिखाती हो 

हमारे भविष्य को सजाती हो 

जब हमसे कुछ गलत होता 

झट से आके टोक जाती हो 


तुम से ही मिलता समर्पण का  भाव 

व्यष्टि से समष्टि का भाव 

जब कोई दुविधा आती है 

त्यों ही याद तुम्हारी आती है 

दर्द जब थोड़ा सा होता है 

कराह मे आह ! माँ निकलता है और, 

तुम्हारी गोद याद आ जाती है 


जब हम ढीठपना करते झट से बेलन तुम उठाती हो 

अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर जाती हो 


तुम्हारी ममता का कोई मोल नहीं 

तुम्हारी ममता का कोई तोल नहीं 

तुम्हारे पास जब आते हैं हम 

सारे दुख भूल जाते हैं 


कभी आंसु बन के याद आती हो 

कभी प्यार से हमे जगाती हो 

माँ तुम एक एहसास हो 

माँ तुम एक सम्मान हो 



हिंदी यह तुझ पर जो बिंदी है 

उससे तू पाती सम्मान 

और हमे  देती संस्कार.


हिंदी यह तुझ पर जो बिंदी है 

हमको बहुत यह भाती है 

मन को बहुत रिझाती है .


तेरे सम्मान से बढ़ता हमारा आत्मविश्वास 

और जगत को मिलती आभा,

अंधकार सब मिट जाते मन के 

जब हम अपनी वाणी से करते तेरा  स्पर्श. 


मस्तिष्क की तारतम्यता बढ़ती 

ह्रदय हो जाता प्रसन्न.


हिंदी यह तुझ पर जो बिंदी है 

उससे तू पाती सम्मान 

और हमे देती संस्कार .