सुरभि इंदौर, मध्यप्रदेश

जो बीत गया

सो बीत गया

छोड़ पुराने किस्से बातें

आया हैं नया साल

स्वागत कर नए का


बांहे पसारे इन्तज़ार कर रही हैं

आज की पहली सुबह

कर तू जीवन की नई शुरुआत

जो दे तूझे तेरी पहचान

अब हैं तूझे निरन्तर आगे बढ़ना


शूल से भरें ये पथ

चुभ जाएंगे तेरे पांव में

निकाल कर उन्हें

तू हों खड़ा फिर

इन रास्तों पर हैं तूझे दौड़ना


इस नए सफ़र में

होंगी सैकड़ों कठिनाई

पर होगा तेरे साथ सूर्य का तेज

जो देगा तूझे शक्ति और साहस

जीवन में हर मुश्किल को हल करने का


चमकेगा सितारा जब 

देखेंगे दूर से सब तूझे

होंगी तेरी रोशनी पूरे आसमान में

याद करेगा संसार उन्हें

जो करेगा परिश्रम सदा


                             ‌  सुरभि

कभी लाड़ आता है

 कभी क्रोध 

न छोड़ा जाता है

 न अपनाया 

परछाईं बन कर

  साथ चलता है

बड़ा अनोखा है ये रिश्ता।


दुख भी देता है

 और तड़पाता भी है

न ओढ़ा जाता है

 न तह करके रखा जाता है

बस चादर बन कर

  लिपटा रहता है

बड़ा अनोखा है ये रिश्ता।


न दवा समझ कर 

  पिया जाता है

न ज़हर जानकर 

  निगला जाता है

शीशी में बंद

  रखा रहता है

बड़ा अनोखा है ये रिश्ता।

                       

देखो, जरा सुनो

तुमसे होगी ‌मुलाकात

हक़ीक़त में नहीं सही

तो ख्वाबों में सही


फिर होगी बैठकर बाते हजार

इस धरा पर न सही

तो नीले अम्बर के कक्ष में सही


देखो ,पर शर्त ये है कि

तुम्हें‌ सुननी पड़ेगी

बिने पूछे कोई सवाल

इंसानों के बीच न सही

तो फरिश्तों के बीच सही


फिर होगी मेरी कल्पना साकार

तुम्हारे सामने न सही

तो तुम्हारी तस्वीर को देखकर सही



देखो,जरा सुनो फिर से एक बार

पहुंचेगी एक दिन

तुम्हारी ये सच्ची आवाज़

इस दुनिया के सामने न‌ सही

ईश्वर के सामने ‌सही


नहीं रखूंगा तुम्हें पिंजड़े में कैद कर के

क्यों कि तुम हो एक उड़ान

भरने वाली चिड़िया आज़ाद


तुम मेरे समीप न सही तो

चॉंद तारों के समीप सही ।।